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रघुकुल रीत सदा चली आयी प्राण जाय पर वचन ना जाय

"रघुकुल रीत सदा चली आयी प्राण जाय पर वचन ना जाय"

यह श्लोक आज के समय में भी महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। इसका सार्थक विवेचन निम्नलिखित हो सकता है:

1. कर्तव्य और नैतिकता:
यह श्लोक आदर्श कर्तव्यपरायणता और नैतिक मूल्यों की प्रशंसा करता है, जो आज के समय में भी समर्थन योग्य है।

2. वचन का महत्व:
श्रेष्ठता और आदर्शता का साधन वचनों के माध्यम से हो सकता है, लेकिन वचनों की समर्थन योग्यता का महत्वपूर्ण होना चाहिए।

3. सार्थक जीवन:
यह श्लोक जीवन को सार्थक बनाने की महत्वपूर्ण बातें सिखाता है, जैसे कि कार्यों में ईमानदारी और उदारता।

4. सामाजिक संबंध:
इस श्लोक से हमें सामाजिक संबंधों में साथीता और सहयोग का महत्वपूर्ण भूमिका आता है।

5. प्राण जाय पर वचन ना जाय:
इस भाग में, श्रोता को यह शिक्षा मिलती है कि वचनों का अद्भुत महत्व होता है, जो किसी भी स्थिति में न टूटने वाला हो।

इस श्लोक से हमें यह सिखने को मिलता है कि एक उद्दीपक और सजीव समाज कैसे बना जा सकता है जिसमें नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठा, और वचनबद्धता का पूरा आदान-प्रदान हो।

जय श्री राम, जय श्री राम

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1 comment  
  • Amit Prasad Roopnarayan Jaiswal

    Jai shree ram